भारत में समलैंगिकता की संवैधानिकता | Original Article
ईश्वर अर्थात प्रकृति ने सारी सृष्टि की रचना के साथ पृथ्वी पर स्त्री और पुरुष का भी सृजन किया है और उनकी पीढ़ी (संतान) भविष्य में कायम रहे, इस निमित्त यह व्यवस्था की की ‘स्त्री- पुरुष’ परस्पर ‘यौन- संबंध’ स्थापित करें और अपने संतान को जन्म दें । इस व्यवस्था को विश्व के सभी धर्मों एवं संप्रदायों ने स्वीकार किया है । इस सामाजिक व्यवस्था के विपरीत, समलैंगिकता से तात्पर्य किसी व्यक्ति का समान लिंग के लोगों के प्रति यौन और रोमांसपूर्वक रूप से आकर्षित होना है। वह पुरुष जो अन्य पुरुषों के प्रति आकर्षित होते हैं उन्हें पुरुष समलिंगी या ‘गे’ और जो महिला किसी अन्य महिला के प्रति आकर्षित होती है उसे महिला समलिंगी या ‘लैसबियन’ कहा जाता है। जो लोग महिला और पुरुष दोनों के प्रति आकर्षित होते हैं उन्हें ‘उभय लिंगी’ कहा जाता है। कुल मिलाकर समलैंगिक,उभय लैंगिक और लिंग परिवर्तित लोगों को मिलाकर (LGBT) समुदाय बनता है।